सोमवार, 31 अक्तूबर 2011

कविता : जनता

 जनता 
भूख,बेरोजगारी और गरीबी,
झेल रही है जनता.....
फिर भी चुपचाप जिन्दगी का,
खेल,खेल रही है जनता.....
खुश हैं लूटने वाले,
और सो रही है जनता.....
पर वह दिन दूर नहीं,
जब-सब कुछ बदल जाएगा.....
तब एक ही नारा बोला जाएगा,
कमाने वाला खायेगा....
लूटने वाला ललचाएगा,

लेखक : हंसराज कुमार 
कक्षा : 8
अपना घर   

शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

मैं सोचता हूँ

मैं सोचता हूँ
जब मैं सुबह स्कूल जाता हूँ ....
गरीब बच्चों को देखकर बहुत  पछताता हूँ|
फुटपाथ पर वे बस्ती बनाकर रहते हैं....
उन बच्चों को देखकर मेरा मन दुखी हो जाता है|
ये बच्चे रहते होंगे  कैसे....
इन बच्चो को पढ़ाने के लिए नहीं होंगे पैसे|
ये बच्चे न पढ़ पाते न लिख पाते ....
ये बच्चे मजदूरी व अन्य कार्य करके घर को चलाते|
 इन बच्चों का भी पढने  का होता होगा मन....
लेकिन माता पिता के पास  इतना नहीं है धन |
 इनके माता पिता रोज खाते हैं रोज कमाते हैं ....
अपने बच्चों की शिक्षा के लिए पैसे क्यों नहीं बचाते है |
हमें ऐसे परिवारों को समझाना चाहिए.....
शिक्षा  और अशिक्षा का मतलब भी बताना चाहिए |
ऐसे बच्चों के लिए एक घर बनवाना चाहिए ....
इन बच्चों के माता पिता को नरेगा के |
तहत सौ दिन का कम दीवान चाहिए ....  
इन बच्चो को अच्छी शिक्षा दिलवाना चाहिए|
 जब मैं सुबह स्कूल जाता हूँ ....
गरीब बच्चों को देखकर भुत पछताता हूँ|
नाम: मुकेश कुमार 
कक्षा:10 
अपना घर ,कानपुर

देश के जवान

देश के जवान 
आज के जवानों के बांहों में है शक्ति ....
इसीलिए इनमें झलक रही देश भक्ति |
प्राण ये अपने गवां देंगे ....
लेकिन देश को दुश्मनों के हाथ नहीं लगने देंगे |
देश की सुरक्षा है इनका काम....
दुश्मनों का जीना कर देना हराम|
देश की करते है ये ऐसी सुरक्षा ....
सभी को कर देते हक्का बक्का |
आज के जवानों के बांहों में है शक्ति....
इसीलिए इनमें झलक रही देश भक्ति |
नाम: सोनू कुमार 
कक्षा:10 
अपना घर, कानपुर 

जवानी

जवानी 
प्राण लिए खड़ी है पागल जवानी....
कौन कहता है दूध पीते है या पानी|
पहन ले नर गोलियों की माल....
चल उठ बन जा देश का रखवाल|
रक्त है या नसों में कायर पानी....
देख क्र पता चल जायेगा क्या है कहानी|
चढ़ा दे प्राण अपना स्वतंत्रता पर....
सबको पता चल जायेगा क्या है पागल जवानी|
प्राण लिए खड़ी है पागल जवानी....
कौन कहता है दूध पीते है या पानी|
नाम :सागर कुमार 
कक्षा :8 
अपना घर , कानपुर
 

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

कविता : दीपावली

 दीपावली 

दीपावली का है आया त्यौहार  ,
खुशियाँ खूब मनाया इस बार ....
घर के चारो ओर हैं दिए जलाए ,
लेकिन पटाखा छुडाना नहीं मुझे भाये ....
हर एक इस दीपावली में ,
करोड़ों पटाखे हैं बनते ....
दीपावली के इन पटाखों से ही ,
जाने कितने बच्चे हैं मर जाते ....
बच्चों, दीपावली तुम खूब मनाना,
लेकिन पटाखे तुम कभी मत छुडाना ...
दीपक जलाना और खूब मिठाई खाना,
साथ में मिलकर खुशियाँ खूब मानाना ....
लेखक : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर 
 

सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

कविता : पर्यावरण

 कविता 

पर्यावरण हो रहा है बहुत प्रदूषित,
है मौक़ा अभी मत करो दूषित ......
पेड़-पौधों से तुम जोड़ो नाता ,
जो हम सबके कम है आता ......
बड़ी-बड़ी ये फैक्ट्रियों को करो बंद,
पर्यावरण को अपने तुम रखो स्वच्छंद.....
पेड़-पौधे है हमको खूब लगाना,
इस धरती से है प्रदूषण भगाना.....
सडको पर ये दौड़ती हैं गाड़ियाँ,
हैं फैलाती प्रदूषण, भर के सवारियाँ.....
मेरा सबसे बस यही है कहना ,
पर्यावरण न तुम प्रदूषित रखना.....   

लेखक : धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा : 9
अपना घर  

रविवार, 23 अक्तूबर 2011

मैं सोचता हूँ

मैं सोचता हूँ 
क्या लिखूं  क्या याद करूँ ,
मन में कुछ उमंग सी उठती है....
ह्रदय में कुछ स्फूर्ति सी आती है ,
मस्तिष्क में आवेग सा उत्पन्न होता है ....
मुझे कविता लिखना ही पड़ता है ,
उस समय नहीं रहती किसी विषय की चिंता ....
कोई भी विषय क्यों न होता ,
उसमे अपने मन को आवेग से भर देते है ....
और जो कविता मन में उठती है,
हम उसको लिख देते हैं ....
लिखावट कितनी भी ख़राब हो ,
हमें लिखने की कोशिश करनी चाहिए ...
उठते हैं जो हमारे मन में विचार ,
उन्हें लिखना  ही चाहिए ....
नाम :मुकेश कुमार 
    कक्षा :10                
अपना घर ,कानपुर 

शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

कंहा डालें हम डेरा

कंहा डालें  हम डेरा 
दो दिन का है मेला,
कंहा डालें हम डेरा ....
ये जिन्दगी का है फेरा,
कंही तेरा कंही मेरा ....
दो दिन के सपनों में ,
जिनगी को हमने फेरा....
एस मेले में हमको उन्होने ढकेला,
जिन्होने हमको एस दुनियां में अकेला छोड़ा....
दो दिन का है मेला ,
कंहा डालें हम फेरा  .... 
नाम  : अशोक कुमार 
 कक्षा : 9                       
अपना घर ,कानपुर     

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

कविता - खेल और स्वास्थ्य

कविता - खेल और  स्वास्थ्य  
खेल और स्वास्थ्य में हो जाये मेल ,
खेल- खेल में बन जाये रेल.......
खेल हैं एक जीवन का हिस्सा हैं ,
हमने सुना हैं दादी माँ से किस्सा .....
एक बार की बात बताये ,
साईकिल का चक्का हाथ चलाये .....
यह देखकर हुआ अचमभा ,
सर्कस  वाला था भिखमंगा......
खेल स्वास्थ्य में हो जाये मेल ,
 खेल- खेल में बन जाये रेल .......
लेखक -ज्ञान कुमार 
 कक्षा- ८ अपना घर, कानपुर

सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

कविता - शिक्षक दिवस 

शिक्षक दिवस आया रे ,
 धूम धाम से मनाया रे .....
 नहीं हुई बिलकुल लापरवाही,
 खूब धमा चौकड़ी मचाई ......
५ सितम्बर हैं तारिख ,
 राधा कृष्णन दे गये सीख.....
 मौज करो तुम जल्दी पढ़कर,
अपने गॉव को रखो न अनपढ़......
 लेखक - सोनू कुमार 
 कक्षा -९ अपना घर ,कानपुर

शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

अंधेरी- रात

 कविता =अंधेरी -रात
अंधेरी काली रात थी ,
 नेताओ की बारात थी.....
 बारात में नेता जी आये थे,
 भ्रष्टाचार फैलाये थे .....
अंधेरी काली रात थी ,
 नेता जी फैलाये झोला ....
 करते हैं गड़बड़ घोटाला ,
 जनता को पता चला .....
लगता हैं सब करते हैं घोटाला,
 अंधेरी काली रात थी .....
 नेताओ की बारात थी......
 लेखक - सागर कुमार 
 कक्षा - ८ अपना घर, कानपुर

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

पढ़ने से माँ- बाप ने रोका

शीर्षक -पढ़ने से माँ -बाप ने रोका
वक्त के हालात ने रोका ,
हम को पढ़ने से माँ- बाप ने रोका .....
 जब पहली बार पढ़ने को कहाँ ,
 तब टाल दी मेरी मेरी बात .....
 बोले पढ़कर क्या करोगे ,
 सही नहीं हैं इस देश के हालात......
 एक -एक करके कट गए सभी दिन,
 जब पढ़ना था तब पढ़ न सका .......
 मेरी बातो को कोई समझ न सका ,
 हमको पढ़ने से माँ- बाप ने रोका .......
 लेखक - आशीष कुमार 
कक्षा - ९ अपना घर, कानपुर  



सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

कविता : सूरज

सूरज 
 
ऊपर उठ आया,
ले रोशनी की भरमार....
सारी रात इंतजार किया,
अब आ छाया सब के सिर पर.....
जिसने दिया इस धरती को जीवन,
दिखला सबसे अपनापन.....
नाम तो आपको पता ही होगा,
उसके बिन जीवन जीना असंभव होगा.....
उससे ही है इस धरती पर हलचल,
नाम है जिसका सूर्य चंचल.....   

लेखक : आशीष कुमार 
कक्षा : 9 
अपना घर