शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

कविता - बरसात का मानसून

कविता - बरसात का मानसून 
 ठंडी में हैं क्या पानी बरसा .
जीव जंतु की हो गयी अब दुर्दशा.....
वर्षा से जब धरती पर गिरी बुँदे ,
 उस समय मुझे ऐसा लगा ......
जैसे आ गया हैं बरसात के ,
 महीने का मानसून ......
 अब धूप भी नहीं निकल रही हैं ,
 जमीन में अब पैर फिसल रहे .......
 कही धोखा न हो जाये ऐसा ,
 जिसमे लग जाये ढ़ेर सारा पैसा .......
 लेखक - ज्ञान कुमार  
 कक्षा - 8  अपना घर , कानपुर