बुधवार, 19 सितंबर 2012

शीर्षक :- महंगाई

शीर्षक :- महंगाई 
महंगाई की ऐसी मार पड़ी। 
कि जनता सारी हो  बेहाल।। 
टूट गई अब सारी आशाएँ। 
महंगाई ने जब बिछाया जाल।। 
गरीबी नहीं है इस देश में। 
गरीबों को तो बनाती है ये सरकार।। 
महंगाई को बढ़ा-बढ़ा कर। 
कर दिया सबको बेरोजगार।। 
महंगा हो गया आटा चावल। 
महंगाई ने जब बिछाया जाल।। 
आलू टमाटर का मत पूछो भाव। 
लेकर खाली झोला वापस जाओ।। 
कवि:- धर्मेन्द्र कुमार 
कक्षा:- 9 
अपना घर  

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