गुरुवार, 24 अक्तूबर 2013

कैसी है ये दुनिया



आओ बच्चो तुम्हे दिखाऊ 
 कैसी है  कैसी है  ये दुनिया   
इस दुनिया में सब बटे हुए है 
कोई हिन्दू कोई मुश्लिम 
लड़ते लड़ते ही मर जाते है 
पहले थी कितनी सुन्दर यह दुनिया 
पर अब जाने कैसी हो गयी है यह दुनिया
धरती का तो था एक ही सहारा 
जिसका नाम था ओजोन प्यारा 
दुनिया ने इतना कूड़ा करकट मारा
 बन गया डोजोंन  बेचारा
 कैसी है  कैसी है  ये दुनिया  ………………… 
कैसी है  कैसी है  ये दुनिया   …………………… 

प्रान्जुल 
अपना घर , कक्षा -4

पेपर हूँ

पेपर हूँ  मै  पेपर हूँ कितना अच्छा पेपर हूँ जब पेपर छप के आता सब बच्चो को पढ़ने में मजा आतासब बच्चो का मन खुश हो जाता पेपर हूँ   मै  पेपर हूँ ।  पेपर हूँ  मै  पेपर हूँ।  

                                        प्रभात सिंह
                                     अपना घर  ,   कक्षा 2 





मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

कविता: मौसम

मौसम 

नीले - नीले  आसमान में ।
पानी है काले - काले बादल में।। 
बादल है या कोई छाया है। 
यह तो ईश्वर की माया है।। 
पानी कब ये बरसेगा ?
इन्सान कब तक तरसेगा  ? 
जब भी ये पानी बरसेगा।
धरती को पहले सीचेंगा ।।
हम खूब नहायेंगे पानी में। 
कागज की नाव तैरायेंगे नाली में ।।
पानी में झम - झम कूदेंगे।  
 सबके संग हम भीगेंगे।।
पानी पाकर धरती में होगी हरियाली।  
घर घर में छाएगी फिर खुशहाली।। 
 कवि :  नितीश कुमार 
अपना घर, कक्षा: 3rd