मंगलवार, 31 अक्तूबर 2017

कविता : अब का सोचना

" अब का सोचना "

कल को  क्या अब सोचना, 
वो तो यूँ ही  गुजर गया | 
तैयार रहना है अब हमें,
आने वाले कल के लिए | 
आने वाला जो कल है,
 शायद कल बदल जाए, 
और किसी की मिट  जाए | 
किसने सोचा होगा उस कल को,
क्या होगा उस कल को | 
कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर


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