शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

कविता : सुबह की वह पहली किरण

" सुबह की वह पहली किरण "

सुबह की वह पहली किरण,
लगता है नया सवेरा लाएगी | 
आयी मंडराती हुई आस पास,
जब मैं बैठा खिड़की के पास | 
वह मुझे एक बात समझा गई,
वह बात मुझको समझ में आई | 
याद के सहारे जिया जा सकता है,
हर सुख दुःख को सहा जा सकता है | 
अमावस्य के रात के अँधेरे में भी,
उजयाले के आस लगाए बैठा था | 
की जुगनू जैसा चमकता हुआ 
आएगी एक उम्मीद की किरण | 
सुबह की वह पहली  किरण 
सोच सोचकर सहम गया,
बीतों  दिनों  को देखकर वहम गया | 
हर असंभव को संभव, 
हर नामुनकिन को मुनकिन 
बनाया जा सकता है | 
सुबह की वह पहली किरण,
लगता है नया सवेरा लाएगी | 

नाम : अखिलेश कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर 


कवि परिचय :  अखिलेश कुमार  बिहार राज्य के रहने वाले हैं अपनाघर में रहकर पढ़ाई कर रहें हैं | पढ़ाई में बहुत अच्छा करते हैं | इसके आलावा कवितायेँ लिखना और फूटबाल खेलना इन सभी में रूचि रखते हैं | 

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