शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

कविता : " जीना छोड़ दे "

"जीना छोड़ दे "

जिंदगी में दुःख है तो, 
हम सोचते हैं जीना छोड़ दे | 
जब  सभी दरवाज़े बंद हो, 
तब एक उम्मीद के सहारे जीते हैं | 
हम करते हैं इंतज़ार उस किरण का, 
जो हमारे लिए हुआ बना हो | 
काश हमारी जिंदगी भांग न हो, 
समाज में थोड़ा सम्मान हो | 
फूलों में से थोड़ी खुशियां, 
मेरे परिवार में भी हो | | 

नाम : देवराज कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर 


कवि परिचय : यह हैं देवराज कुमार हैं जो की बिहार के नवादा जिले से कानपूर जिले में पढ़ने के लिए आये हैं | कवितायेँ बहुत अच्छी लिखा करते हैं | इसके साथ - साथ नृत्य भी बहुत अच्छा कर लेते हैं | 

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